भगत सिंह
भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। वह 1907 में पंजाब में जन्मे थे और उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह की देशभक्ति बचपन से ही दिखाई देती थी और उन्होंने अपनी जिंदगी के अंत तक इसके लिए संघर्ष किया।
भगत सिंह ने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपनी जान तक का क़र्बान दिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और स्वतंत्रता संग्राम में अपना समर्थन दिया। उन्होंने समाजवाद के सिद्धांतों का भी समर्थन किया और उनका मानना था कि एक ऐसी समाजवादी समाज जिसमें सभी लोग समान हों और सभी के अधिकार हों, स्वतंत्र भारत के निर्माण में मददगार साबित होगा।
भगत सिंह का नाम भारत के आजादी संग्राम के वीरों में सबसे प्रमुख है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने बलिदान के माध्यम से देश को आजादी दिलाने का सपना देखा था।
भगत सिंह ने कौन सी कसम खाई थी
भगत सिंह ने लाहौर में ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई लड़ने से पहले, २९ अक्टूबर १९२८ को अपनी मां के सामने एक कसम खाई थी कि वह स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ेगा और अपनी देशभक्ति के लिए अपनी जान भी दे सकता है। उन्होंने अपने दो साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ हंगामा कारवाँ आतंकवादी गुप्तवारा की योजना बनाई थी, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ था।
भगत सिंह की उम्र कितनी थी
भगत सिंह की जन्म तिथि 27 सितंबर 1907 को हुई थी और उनकी मृत्यु वीरगति के रूप में 23 मार्च 1931 को हुई थी। इससे उनकी उम्र 23 वर्ष थी। भगत सिंह ने अपनी छोटी उम्र में ही देश के स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का फैसला किया था और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने का निर्णय लिया था।
भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई थी
भगत सिंह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष करने वाले भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरोध में अनेक आंदोलनों और अपनी देशभक्ति के प्रति अपनी जान की क़ुर्बानी दी।
भगत सिंह ने 1928 में लाहौर के स्थानीय ब्रिटिश अदालत में शामिल होने के बाद उन्हें वफ़ादारी विरोध के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। दो अन्य स्वतंत्रता सेनानियों सुखदेव और राजगुरु के साथ उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस घटना को लाहौर केस के नाम से जाना जाता है।
भगत सिंह ने अपनी उम्र की सीमा से भी पहले ही देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया था। उन्होंने अपनी जान की कुर्बानी देकर अपने देशवासियों के लिए एक आदर्श स्थापित किया था।
भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर केस के तहत फांसी की सजा सुनाई गई थी और इस मामले में जज नवल किशोर ने फैसला दिया था। उन्होंने इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को वफ़ादारी विरोध और देशद्रोह के आरोप में दोषी ठहराया था और उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। नवल किशोर एक अंग्रेजी जज थे और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े लोगों को बहुत सख्ती से सज़ा दी थी।
भगत सिंह की पत्नी का नाम
भगत सिंह की शादी नहीं हुई थी और उनकी कोई पत्नी नहीं थी। भगत सिंह एक ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी थे जो अपनी जान की कुर्बानी देकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े थे। वे भारत के आजादी के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे थे और अपने देश के लिए एक आदर्श स्थापित किया।
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